जानिए कहाँ पर की जाती है झूम कृषि , क्या है इस तरीके से खेती करने के फायदें

दोस्तों हमारा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारे देश की आधी आबादी कृषि पर ही निर्भर है। इसलिए भारत लगातार कृषि को लेकर नई - नई तकनीकी अपना रहा है। पुरानें समय में हमारे देश में खेती कम संसाधन केबीच में की जाती थी। लेकिन जैसे - जैसे समय बदला खेती के तरीके में भी बदलाव होने लगा। कई सारी पद्धती ऐसी है जिसके लोग आज भी अपनाकर अच्छा मुनाफा कमा रहें है। इन्हीं में से एक है झूम कृषि। यह पुरानी कृषि में से एक है। इस प्रकार की कृषि विकासात्मक या पर्यावरणवादी द्वारा तेजी से किया जा रहा है। इस ब्लॉग में आज हम झूम खेती से बारें में जानेंगे , कैसे की जाती है झूम खेती और क्या है इसके फायदें और नुकसान।

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झूम खेती क्या है

झूम खेती को भारत के किसान बहुत पहले से करते आरहें है। इस खेती में पेड़ों और वनस्पतियों को पहले काटते है उसके बाद इन्हे जलाकर मिटटी को जोता जाता है , जिसके कुछ समय बाद इसमें बीज बोए जाते है। इस खेती में पूरी फसल प्रकृति पर निर्भर होती है। किसान इस तरह की भूमि पर कुछ समय तक की खेती करते है , जिसके बाद इसमें पेड़ और पौधों को ऊगा दिया जाता है। इसे अंग्रेजी में ‘Slash-and-Burn’ कहा जाता है। 

यह एक तरह की स्थांतरण खेती है। अगर किसान इस विधि से दोबारा खेती करना चाहते है तो कहीं और जंगली भूमि को साफ करके फिर से किसान खेत को उपजाऊ बनाते है। कुछ वर्षों तक खेती करते है, उसके बाद फिर जमीन पर पेड़ लगा के छोड़ देते है। यह खेती ज्यादातर उत्तरपूर्वी पहाड़ियों में आदिम जातियों के द्वारा की जाती है। अगर कृषि एक्सपर्ट कि मानें तो दुनिया भर में 200 मिलियन से 500 मिलियन लोग आज भी इस खेती की विधि को अपना रहने है। यह वनों की कटाई करने पर बनता है , इसलिए कुछ राजय की सरकारों ने इसपर बैन भी लगा रखा है। जलें हुए पेड़ की राख मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करते है , जिससे फसल की पैदावार अच्छी होती है। यह खेती हमारे पूर्वजों के समय में सबसे ज्यादा कामगार थी। उस समय इंसान की आबादी ज्यादा नहीं होती थी और प्रकृति पर भी इतना भार नहीं था इसलिए जंगल के छोटे - छोटे जगह को हटा कर किसान भूमि को उपजाऊ बनाते थे और खेती करते थे। कृषि एक्सपर्ट की मानें तो जगल के जलने पर खेत में पोटाश मिल जाता था , जो मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्व को बढ़ावा देता था। जिसके बाद लोग उसपर तब तक खेती करते थे जब तक मिट्टी की उर्वरता रहती थी। जब भी उर्वरता खत्म हो जाती थी किसान जगह को भी बदल देते थे।

झूम खेती को आसान भाषा में समझें

अगर हम इसे आसान भाषा में समझे तो इस विधि में जंगल और वृक्ष को काटकर जलाया जाता है जिसके बाद क्यारियां बनाई जाती है और भूमि को साफ़ करके हल या फिर किसी पुरानी विधि से खेत की जुताई करते है। इसके फसल में किसी भी तरह के कैमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस तरह से खेती करने पर 2-3 साल बाद जमीन को उर्वरा शक्ति एकदम से कम हो जाती है , जिसके बाद जमीन में फिर से पेड़ उगने के लिए नए पेड़ लगा दिए जाते है।

फायदे और नुकसान

कृषि एक्सपर्ट बताते है कि यह प्रणाली लाखों कोभोजन और आय प्रदान करती है। यह खेती कई वर्षों से चली आरही है। इस खेती को उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों नहीं किया जा सकता है। झूम खेती करने वाले किसान आमतौर पर कई तरह की फसलों को उगाते है और जैव विविधता में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते है। इस खेती को कृषि वनिक के रूप में भी जाना जाता है।झूम खेती से नगदी फसल को नहीं उगाया जा सकता है। इस खेती के लिए भारी मात्रा में जमीन और कम घनत्व वाले आबादी की जरूरत पड़ती है। लेकिन अगर एक ही क्षेत्र में इसकी खेती की जाये तो कई तरह के नुकसान भी होते है।

भारत में झूम खेती

भारत में झूम खेती कुछ ही हिस्सों में की जाती है। इसको लेकर कई तरह की विवाद भी होते रहें है, लेकिन आज भी यह खेती तेजी से की जा रही है। अगर हम भारत की बात करें तो उड़ीसा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और केरल में इसकी खेती कुछ हिस्सों में ही होती है वहीँ मेघालय, नागालैंड, अरूणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्तरी राज्यों व आंशिक रूप से छत्तीसगढ़ के बस्तर के अबूझमाड़ क्षेत्र में इस विधि से खेती काफी तेज़ी से होती है। यहाँ रहने वाले आदिवासी समूह आज भी झूम खेती करते है। हम सभी जानते है कि आदिवासी ही है जो घनें जंगल में रहते है , इसलिए इस खेती के तरीके को सबसे ज्यादा आदिवासी ही अपनाते है। आदिवासी लोग जंगल को साफ करके खेती करते है। जब तक जमीन उपजाऊ होती है वह खेती करते है , इसके बाद उस जगह को छोड़कर चलें जातें है।

झूम खेती को लेकर चर्चा और बहस क्यों?

यह खेती इसलिए चर्चा में रहती है क्योंकि इसके कारण जंगल को बहुत नुकसान पहुँचता है। कभी - कभी आदिवासी हरे - भरे पेड़ों को काटकर खत्म कर देते ,यही वजह है की सरकार इस खेती को बंद करना चाहती है। लेकिन यह आदिवासी समाज के लोगों के लिए पेट भरने का एक साधन भी है ,क्योंकि आदिवासी लोगों के पास खुद की जमीन नहीं है और वह पढ़े लिखे भी नहीं होते जिससे उनको कही रोजगार मिल सकें , इसलिए अपना पेट भरने के लिए इस तरह ी खेती करते है।

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निष्कर्ष

आज हमने जाना कि झूम खेती क्या है और यह भारत में किस तरह से की जाती है। आशा है कि किसान भाइयों को हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। आप हमारे इस ब्लॉग को अपने सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर भी कर सकते है , जिससे और भी लोगों तक यह जानकारी पहुँच सकें। अगर आप GEEKEN CHEMICALS के Bst Qality Psticide Poducts प्रोडक्ट को खरीदना चाहते है तो हमारे दिए हुए नंबर पर कॉल (+91 - 9999570297) भी कर सकते है। हमारे प्रोडक्ट को आप ऑनलाइन तरीके से भी खरीद सकते है।

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