जानिए कैसे आलू की पछेती झुलसा रोग की करें रोकथाम

आलू को हम सब्जियों का राजा कहते है। आलू विश्व की एक महत्तवपूर्ण सब्जियों वाली फसल है। यह एक सस्ती और आर्थिक फसल है, जिस कारण इसे गरीब आदमी का मित्र कहा जाता है। आलू की फसल को हम लगभग भारत के सभी राज्यों में उगाते है। भारत में ज्यादातर उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, पंजाब, कर्नाटका, आसाम और मध्य प्रदेश में आलू उगाए जाते हैं। आलू की खेती अगेती या पिछेती यह झुलसा रोक के प्रति संवेदनशील होती है। आलू की फसल को सर्वाधिक नुकसान भी इसी रोग से पहुंचता है। आम तौर पर यह रोग दिसंबर के महीने में फसल में लगता है लेकिन इस बार बेमौसम बरसात से इस रोग का खतरा अभी से शुरू हो गया है। कहीं कहीं अगेती फसलों में इसके लक्षण भी मिले हैं। ऐसे में विशेषज्ञों का मानना है कि तत्काल प्रबंधन कर किसान रोग से होने वाली क्षति को रोक सकते है। नहीं तो यह रोग उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। आखिर क्या है आलू की पछेती झूलसा रोग ( late blight of potato in hindi) इसी से सम्बंधित है हमारा आज का यह आर्टिकल। तो चलिए विस्तार से जानते है आलू की इस महत्वपूर्ण रोग को।

क्या है पछेती झुलसा रोग

आलू के पछेती झुलसा रोग को हम आयरिश अंगमारी के नाम से भी जानते है। आलू की फसल में लगने वाला यह प्रमुख रोग है। यह उन जगह पर पाया जाता है जहाँ आलू की खेती ज्यादा मात्रा में की जाती है। इस रोग के बारें में बताया जाता है कि यह सबसे पहले दक्षिण अमेरिका के उत्तरी ऐन्डेस में पाया गया था फिर धीरे - धीरे भारत में भी अपना बसेरा कर लिया। अगर भारत की बात किया जाये तो यह रोग उत्तर प्रदेश के मैदानी और पहाड़ी इलाके में ज्यादा पाया जाता है। इस रोग के बारें में बताया जाता है कि जब मैसम में नमी और कई दिनों तक बारिश होती है , तन इसका प्रकोप ज्यादा देखने को मिलता है। यह रोग 5 दिन के अंदर ही आलू की पत्तियों को नष्ट कर देता है। पत्तियों में सफ़ेद रंग के गोले बन जाते है , जो धीरे - धीरे अपना रंग बदलकर भूरे व काले होने लगते है। इस रोग की वजह से आलू के कंद का आकर छोटा हो जाता है और पैदावार में कमी आ जाती है।

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आलू का पछेती झुलसा रोग का कारण

सब्जियों का राजा आलू की फसल में लगने वाला यह सबसे भयानक रोगो में से है। यह रोग फाइटाफ्थोरा इनफेस्टैन्स‘ नामक कवक की वजह से होता है जो कवको की एक विशेष श्रेणी ‘मैस्टिगोमाइकोटीना‘ से सम्बंधित होता है। यह रोग मुख्यतः आद्रता और तापमान को प्रभावित करता है। इसके लिए 16 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान से लेकर 22 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के बीच उपयुक्त माना जाता है।

आलू का पछेती झुलसा रोग का लक्षण

• इस रोग का सबसे पहला लक्षण जमीन के पास वाली पत्तियों पर पौधे में फूल आने के समय या फिर अनकूल वातावरण मिलने पर प्रकट होता है। यदि रोग के लक्षण कि बात की जाये तो प्रभावित पत्तियों पर वृत्ताकार अथवा अनियमित आकार के हल्के पीले या हरे रंग के धब्बों के रूप में प्रकट होते है। यह धब्बे पत्तियों के ऊपरी सिरो या किनारों से बनना आरंभ होते हुए पत्तियों के मध्य भाग की ओर बढ़ते हुए बनते है। नम मौसम मिलने पर यह शीघ्रता से फैल कर भूरे रंग के मृत धब्बे के रूप में दिखने लगते है और पुरे पौधे को गिरफ्त में लें लेते है। • अक्सर यह भी देखा गया है कि मौसम में लगातार नमी और वातावरण में बदली या फिर बूंदाबादी की वजह से भी यह रोग आलू को ग्रसित कर लेता है। • इसके साथ ही साथ उनमें से एक विशेष प्रकार का दुर्गंध भी आने लगता है। मौसम शुष्क होने पर यह रोग प्रभावित पौधे की पत्तियों पर हलके से कत्थई रंग के धब्बे ही बनकर रह जाते है। जिसके कुछ समय बाद ही यह सिकुड़नें लगते है।

आलू के झुलसा रोग नियंत्रित करने का तरीका

1. आलू के पछेती झुलसा रोग को नियंत्रित करने के निम्न तरीके है :- 2. आलू के लिए सबसे पहले हमें प्रमाणित बीजों को ही बोना चाहिए। 3. आलू की खुदाई के बाद कंद को खत्म कर देना चहिये। 4. खेत में या उसके आसपास कोई भी खरपतवार को नहीं उगने देना चाहिए क्योंकि यह खरपतवार इस रोग के मृतजीवी के रूप में उत्तरदायित्व होते हैं। 5. आलू की खुदाई फसल के पूरी तरह पक जानें के बाद ही करना चाहिए। 6. इसके लिए आप GEEKEN CHEMICALS का बना हुआ Ribban (Captan 70% + Hexaconazole 5% WP) और Kenzeb (Mancozeb 75% WP) का प्रयोग कर सकते है। यह पूरी तरह से आपके कीटों को ख़त्म कर देगा और आपके फसल को सुरक्षित बनाएगा। Hexaconazole 5% EC एक शक्तिशाली एर्गोस्टेरोल बायोसिंथेसिस अवरोधक है। Hexaconazole 5% EC ट्रायजोल समूह का systemic Fungicide कीटनाशक है।

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निष्कर्ष

आज हमने अपने इस ब्लॉग में अगेती झुलसा रोग के बारें में जानकारी प्राप्त की। आशा है कि किसान भाइयों को यह जानकारी पसंदा आयी होगी। आप अपने खेती बारी और कीटनाशक , खरपतवार नाशक के लिए हमारे माध्यम से जानकारी प्राप्त कर सकते है। आप अपने इस ब्लॉग को अपने सोशल मीडिया पर शेयर भी कर सकते है। जिससे अधिक से अधिक किसान भाइयों तक यह जानकारी पहुँच सकें और वो अपने फसल की सुरक्षा कर सकें।

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